पीड़िता की सहमति से बनाया गया यौन संबंध बलात्कार नहीं है -उड़ीसा हाई कोर्ट

 उड़ीसा हाई कोर्ट ने हाल ही में है देखते हुए कि यौन संबंध पीड़िता की सहमति से बनाए गए थे। ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को दोषी ठहराए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है।                                                                          मामले के अनुसार पीड़िता के पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी। कि उसकी बेटी जिसकी उम्र लगभग 17 वर्ष थी। पशुओं को चराने के लिए प्रतिदिन जंगल में जाती थी। आरोपी जो कि उसी गांव का निवासी है। वह भी पशुओं को चराने जंगल जाता था। लड़की के पिता का आरोप था कि आरोपी बहला-फुसलाकर और धमकी देकर उसकी बेटी के साथ यौन संबंध बनाता रहा था। जब वह जंगल में अकेली होती थी। जिससे शिकायत किए जाने वाले दिन तक वह 7 महीने की गर्भवती हो गई थी। क्योंकि आरोपी पीड़िता को धमकी दे रहा था कि वह इस बाबत किसी को ना बताएं। अगर इसका खुलासा उसने परिवार या किसी अन्य के साथ किया तो इसका गंभीर दुष्परिणाम उसे भुगतना होगा। आरोपी के डर से उसने इस बाबत अपने परिवार को भी नहीं बताया था।                                                पीड़िता के पिता की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी के विरुद्ध आईपीसी की धारा और एस सी/एस टी अधिनियम के तहत एफ आई आर दर्ज की थी। जिसके बाद आरोपी के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट में ट्रायल की कार्यवाही की गई थी। टायल की समाप्ति के बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को एस सी/ एस टी अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया था। लेकिन आईपीसी की धारा 376(2) (एन) और 506 के तहत दोषी माना था।                                                                    ट्रायल कोर्ट के आदेश से नाराज आरोपी ने हाईकोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी।                              जस्टिस संगम साहू की एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने अपील पर फैसला देते हुए कहा है। कि पीड़िता की आयु का निर्धारण करने वाले डॉक्टर ने कहा है कि शिकायत दर्ज कराने के समय पीड़िता की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच रही होगी। चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किसी व्यक्ति की जो उम्र निर्धारित की जाती है। उसमें 2 साल का मार्जिन होता है। सही उम्र निर्धारित आयु से 2 साल कम या 2 साल से ज्यादा हो सकती है। अदालत ने कहा यदि भिन्नता की उच्चतर स्तर पर गणना की जाए तो पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक रही होगी। इस प्रकार पीड़िता एक बालिग व्यक्ति है। जिससे ऐसा लगता है कि वह पीड़िता जंगल में पशु चराने जाती थी। और आरोपी भी जंगल में पशु चराने जाता था। और दोनों जंगल में आपसी सहमति से यौन संबंध बनाते थे।                 इसी के साथ अदालत ने कहा है कि पीड़िता ने आरोपी के इस कृत्य का कभी कोई विरोध किया हो इसका भी कोई प्रमाण नहीं है। और ना ही पीड़िता ने आरोपी के इस कृत्य का खुलासा अपने परिवार वालों या किसी अन्य के समक्ष किया था। पीड़िता ने यह आरोप भी नहीं लगाया है कि आरोपी ने शादी के वायदे पर उससे सहमति हासिल की थी। पीड़िता यह भी जानती थी। कि आरोपी एक शादीशुदा व्यक्ति है।और 4 बच्चों का पिता है। उसके साथ शादी होने की भविष्य में भी कोई संभावना नहीं है।                                                              इस प्रकार अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन संबंध उसकी सहमति से बनाए थे।इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद अदालत ने कहा है। कि इस सच्चाई को जानते हुए भी कि आरोपी के साथ उसकी शादी की कोई संभावना नहीं है। पीड़िता जंगल में जाकर यौन क्रिया करने के लिए अपनी स्वतंत्र इच्छा का उपयोग कर रही थी।                                                  अदालत ने कहा है कि मामले की परिस्थितयां स्पष्ट रूप से इस ओर इंगित करती हैं। कि पीड़िता ने स्वतंत्र रूप से, स्वेच्छा से और सचेत होकर आरोपी के साथ यौन संबंध बनाए थे। आरोपी के साथ यौन संबंधों के लिए पीड़िता की सहमति किसी गलत धारणा पर आधारित नहीं थी।                                                 अदालत ने यह देखते हुए कि पीड़िता की सहमति से बनाया गया यौन संबंध अपराध नहीं है। ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आरोपी को दोषी ठहराया गया था।
INDIAN LAW EXPRESS

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