मुंबई हाई कोर्ट ने हाल ही में पुलिस द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है। जिसमें पुलिस ने एक हत्यारोपी की सही उम्र का पता लगाने के लिए यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी(UIDAI) को निर्देश देने की मांग की थी। कि यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी उन दस्तावेजों का खुलासा करें। जिनके आधार पर उसने आरोपी की जन्मतिथि आधार कार्ड में दर्ज की थी। मामले के अनुसार उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक हत्यारोपी को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के समय आरोपी के पास से एक आधार कार्ड बरामद हुआ था। जिसमें उसकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1999 लिखी हुई थी। गिरफ्तारी के
बाद आरोपी ने स्वयं को नाबालिग बताते हुए पुणे की सेशंस कोर्ट में एक आवेदन दिया था। और मामले को किशोर न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी। आरोपी ने नाबालिग होने के सबूत के तौर पर एक आधार कार्ड अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था। जिसमें उसकी जन्मतिथि 5 मार्च 2003 लिखी हुई थी। अदालत ने आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर आरोपी को नाबालिग मानते हुए उसके मामले को किशोर न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया था। जिसके बाद पुलिस ने यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी से संपर्क किया और उन दस्तावेजों का खुलासा करने की मांग की, जिनके आधार पर अथॉरिटी ने आरोपी की जन्म तिथि 5 मार्च 2003 दर्ज की गई थी। आरोपी को आधार कार्ड प्रदान करने वाली अथॉरिटी ने निजी जानकारी का हवाला देते हुए पुलिस को कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। जिसके बाद पुणे पुलिस ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यूआईडीएआई को निर्देश दिए जाने की मांग की। कि वह उन दस्तावेजों का खुलासा करें जिनके आधार पर आधार कार्ड में आरोपी की जन्म तिथि 5 मार्च 2023 दर्ज की गई थी। यूआईडीएआई की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि आधार कार्ड किसी व्यक्ति की विशिष्ट पहचान का प्रमाण पत्र है। इसको किसी व्यक्ति की सटीक उम्र के निर्धारण का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। इसकी घोषणा सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में की है। मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस रेवती ढेरे की पीठ ने पुलिस द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा है। कि पुलिस को आरोपी की उम्र के संबंध में संशय है। तो उससे सेशंस कोर्ट जाना चाहिए और सेशंस कोर्ट के समक्ष आरोपी की उम्र को चुनौती देनी चाहिए। सही उम्र निर्धारण के लिए बर्थ सर्टिफिकेट और स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट जैसे प्रमाण पत्र महत्वपूर्ण हैं। उनकी खोज करनी चाहिए। इसी के साथ अदालत ने कहा है कि आरोपी के पास एक से अधिक आधार कार्ड हैं। पुलिस चाहे तो आरोपी के विरुद्ध फर्जी आधार कार्ड रखने के जुर्म में अभियोग पंजीकृत कर सकती है।
बाद आरोपी ने स्वयं को नाबालिग बताते हुए पुणे की सेशंस कोर्ट में एक आवेदन दिया था। और मामले को किशोर न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी। आरोपी ने नाबालिग होने के सबूत के तौर पर एक आधार कार्ड अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था। जिसमें उसकी जन्मतिथि 5 मार्च 2003 लिखी हुई थी। अदालत ने आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर आरोपी को नाबालिग मानते हुए उसके मामले को किशोर न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया था। जिसके बाद पुलिस ने यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी से संपर्क किया और उन दस्तावेजों का खुलासा करने की मांग की, जिनके आधार पर अथॉरिटी ने आरोपी की जन्म तिथि 5 मार्च 2003 दर्ज की गई थी। आरोपी को आधार कार्ड प्रदान करने वाली अथॉरिटी ने निजी जानकारी का हवाला देते हुए पुलिस को कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। जिसके बाद पुणे पुलिस ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यूआईडीएआई को निर्देश दिए जाने की मांग की। कि वह उन दस्तावेजों का खुलासा करें जिनके आधार पर आधार कार्ड में आरोपी की जन्म तिथि 5 मार्च 2023 दर्ज की गई थी। यूआईडीएआई की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि आधार कार्ड किसी व्यक्ति की विशिष्ट पहचान का प्रमाण पत्र है। इसको किसी व्यक्ति की सटीक उम्र के निर्धारण का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। इसकी घोषणा सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में की है। मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस रेवती ढेरे की पीठ ने पुलिस द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा है। कि पुलिस को आरोपी की उम्र के संबंध में संशय है। तो उससे सेशंस कोर्ट जाना चाहिए और सेशंस कोर्ट के समक्ष आरोपी की उम्र को चुनौती देनी चाहिए। सही उम्र निर्धारण के लिए बर्थ सर्टिफिकेट और स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट जैसे प्रमाण पत्र महत्वपूर्ण हैं। उनकी खोज करनी चाहिए। इसी के साथ अदालत ने कहा है कि आरोपी के पास एक से अधिक आधार कार्ड हैं। पुलिस चाहे तो आरोपी के विरुद्ध फर्जी आधार कार्ड रखने के जुर्म में अभियोग पंजीकृत कर सकती है।
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