किसी व्यक्ति को एकमात्र इस आधार पर रोजगार/ प्रमोशन से इनकार नहीं किया जा सकता है। कि वह एचआईवी/ एड्स से पीड़ित है - इलाहाबाद हाईकोर्ट

 हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है। कि किसी व्यक्ति को रोजगार या नौकरी में प्रमोशन देने से केवल इस आधार पर इंकार नहीं किया जा सकता है। कि वह एचआईवी/ एड्स से ग्रसित है। अगर वह रोजगार/ प्रमोशन के लिए अन्य सभी अर्हताये में पूरी करता है।                 अदालत ने कहा है कि एचआईवी/ एड्स ग्रसित व्यक्तियों को रोजगार/ प्रमोशन से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है। एक जैसी परिस्थितियों में समानता का अधिकार भारत के सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है। जो नागरिकों को भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए किसी भी भारतीय नागरिक के साथ उसके एचआईवी/एड्स ग्रसित होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।                                                           मामले के अनुसार केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स में सिपाही के पद पर तैनात एक व्यक्ति 2008 में एचआईवी एड्स पॉजिटिव पाया गया था। जिसके बाद उसकी बीमारी की गंभीर प्रकृति को देखते हुए उसे नियमित उपचार की जरूरत बताई गई थी। और इसी आधार पर उसे प्रमोशन देने से इंकार कर दिया गया थ। हालांकि इससे पूर्व जब उसकी बीमारी इतनी गंभीर नहीं थी। तब उसका प्रमोशन किया गया था। लेकिन तब वह प्रमोशन के बाद नए पद हेड कांस्टेबल की ड्यूटी ज्वाइन करने में नाकाम रहा था। क्योंकि उसे विभाग के उस स्थान से छुट्टी नहीं दी गई थी। जहां पर वह सेवारत था। जिसके बाद वह कांस्टेबल के पद पर ही बना रहा।                     बीमारी की गंभीर स्थिति को देखते हुए जब उससे प्रमोशन से इंकार कर दिया गया तो उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि हाईकोर्ट से भी उसे कोई राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट में सिंगल जज की बेंच ने विभाग के आदेश को सही मानते हुए उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। और सीआरपीएफ अधिकारियों को उसे प्रमोशन देने का आदेश देने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद सिंगल जज के आदेश के विरुद्ध उसने अपील दायर की।                                          जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के विरुद्ध अपील की सुनवाई करते हुए कहा कि एचआईवी/एड्स ग्रसित होने के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। अदालत ने यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के रोग की स्थिति किसी भी तरह से उसकी पदोन्नति में बाधक नहीं है। अदालत ने कहा कि यह सामान्य धारणा है। पदोन्नति के बाद व्यक्ति को पहले से कम शारीरिक श्रम करना पड़ता है। वर्तमान में याचिकाकर्ता को अपनी ड्यूटी के संदर्भ में जितना श्रम करना पड़ता है। प्रमोशन के बाद उसे कम ही श्रम करना पड़ेगा। अदालत ने आगे कहा कि जब याचिकाकर्ता कांस्टेबल के पद के लिए शारीरिक रूप से फिट है तो हेड कांस्टेबल के पद के लिए भी फिट ही रहेगा।                                                                               अदालत ने अपने आदेश में कहा है। कि याचिकाकर्ता प्रमोशन के वैसे सभी लाभ पाने का अधिकारी होगा। जैसे कि उन लोगों को दिए जाते हैं। जो एचआईवी/ एड्स पॉजिटिव नहीं है। वह भी उस दिन से जिस दिन उससे भी जूनियर व्यक्तियों का प्रमोशन किया गया था। इसी के साथ अदालत ने उन सभी आदेशों को रद्द कर दिया जो याचिकाकर्ता को प्रमोशन देने से रोकते हैं।
INDIAN LAW EXPRESS

Post a Comment

Previous Post Next Post