इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में बलात्कार पीड़ित एक नाबालिग मूक - बधिर द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है। कि बलात्कार पीड़ित को बच्चा पैदा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति ना देने से उसके साथ घोर अन्याय होगा। अदालत उस याचिका की सुनवाई कर रही थी।जिसमें 12 साल की दुष्कर्म पीड़िता ने 25 सप्ताह के गर्भ समापन की अनुमति मांगी थी। मामले के अनुसार पीड़िता का पड़ोसी लंबे समय से पीड़िता के साथ बलात्कार कर रहा था। लेकिन पीड़िता बोलने सुनने में असमर्थ होने के कारण अपने साथ हो रही बलात्कार की वारदात को किसी से कह नहीं पाई थी। जब पीड़िता को गर्भ ठहर गया तो इसकी जानकारी पीड़िता की मां को हुई। जिसके बाद पीड़िता की मां ने इसकी शिकायत पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई। पीड़िता ने आरोपी की पहचान पुलिस को इशारों के माध्यम से बताई थी। मेडिकल जांच के दौरान डॉक्टरों ने पता लगाया कि पीड़िता 24 सप्ताह के गर्भ से है। डॉक्टरों ने यह देखते हुए कि 20 सप्ताह से ऊपर के गर्भ की समाप्ति अदालत की अनुमति के बगैर नहीं की जा सकती है। पीड़िता को अदालत जाने का सुझाव दिया। जिसके बाद पीड़िता ने गर्भ समापन की अनुमति दिए जाने की मांग वाली याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। 10 जुलाई को याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति को निर्देशित किया था। कि वह जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अलीगढ़ के प्राचार्य को मेडिकल टीम बनाकर याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच कराने का निर्देश दें। इसके साथ ही अदालत ने कहा था मेडिकल जांच रिपोर्ट डॉक्टरों की राय सहित 12 जुलाई को अदालत के समक्ष पेश की जाए। पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट और डॉक्टरों की राय आ आने के बाद अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और मेडिकल जांच रिपोर्ट तथा डॉक्टरों की राय को ध्यान में रखते हुए गर्भ समापन का आदेश देना न्याय संगत, कानूनी और उचित होगा। जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने पीड़िता के गर्भ समापन से लेकर समापन के बाद की सभी चिकित्सा सुविधाओं को मुफ्त प्रदान करने का आदेश जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को दिया है। साथ ही इसकी पूरी रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने को कहा है।
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