सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निर्देश दिया है कि अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल कर शीर्ष अदालत की अवमानना करने और न्यायपालिका के कार्य में बाधा पहुंचाने वाले वकीलों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई है उसका लेखा-जोखा बार काउंसिल ऑफ इंडिया अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2022 में ओड़िशा के संबलपुर में हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करने के मुद्दे को लेकर लंबे समय से हड़ताल कर रहे वकीलों के विरुद्ध कार्यवाही के रूप में उनके लाइसेंस रद्द करने का निर्देश बार काउंसिल ऑफ इंडिया को दिया था। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने ओडिशा की अदालतों में हंगामा करने वाले वकीलों के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश सरकार और पुलिस को भी दिए थे। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि वकीलों को अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल करने का अधिकार नहीं है। वकीलों की हड़ताल से न्यायिक कार्य में बाधा उत्पन्न होती है। वकीलों को यह अधिकार नहीं है कि वह न्यायिक कार्य में बाधा पहुंचाएं। जनवरी 2023 में भी शीर्ष अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए वकीलों को हड़ताल पर जाने से रोकने के लिए ठोस योजना बनाने के लिए वीसीआई को पेशेवर आचार संहिता के नियमों को कठोर बनाने का निर्देश दिया था। अप्रैल 2023 में भी इसी मुद्दे के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोई भी वकील हड़ताल नहीं कर सकता है। और हड़ताल के नाम पर न्यायिक कार्य से विरत नहीं रह सकता है। वकीलों की समस्याओं के समाधान के लिए अदालत ने राज्य स्तर और जिला स्तर पर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में शिकायत निवारण समितियां बनाने का सुझाव दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों द्वारा की जाने वाली हड़ताल को अवैध और गैरकानूनी घोषित किया हुआ है। इसके बावजूद वकीलों को हड़ताल का आह्वान करते हुए देखा जा सकता है। जो शीर्ष अदालत की अवमानना है। शीर्ष अदालत के आदेशों की अवहेलना कर हड़ताल करने वाले वकील सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं। जिसको लेकर एक स्वयंसेवी संगठन कॉमन कॉज द्वारा शीर्ष अदालत में अवमानना याचिका दायर की गई थी। अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा वकीलों द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल करने से उन लोगों के हित प्रभावित होते हैं जो न्याय के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाते हैं। वकीलों की हड़ताल से न्याय वितरण प्रणाली में बाधा उत्पन्न होती है। न्याय वितरण प्रणाली में बाधा डालने की अनुमति किसी को भी नहीं दी जा सकती है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन के दूसरे तरीके हो सकते हैं। इसलिए वकीलों को अदालती कामकाज में बाधा डालने की अनुमति किसी भी कीमत पर नहीं दी जा सकती है। मामले में बार काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से पेश वकील मनन कुमार मिश्रा से जब अदालत ने पूछा कि पिछले एक साल में देश भर के अंदर वकीलों के संगठनों द्वारा बुलाई गई हड़ताल के संबंध में हड़ताल का आह्वान करने वाले संगठनों के पदाधिकारियों और हड़ताल में शामिल वकीलों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई है। तो वकील ने कहा बीसीआई ने इस संबंध में कुछ नियम बनाए हैं। जिनकी एक प्रति प्रतिवादी की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण को भी दी गई है। उन्होंने आगे कहा अगर अदालत अपनी सहमति व्यक्त करती है तो वीसीआई इन नियमों को लागू करेगी। इस पर प्रतिवादी की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि नियम इतने कमजोर हैं जो वकीलों को हड़ताल करने से नहीं रोक सकते हैं। उन्होंने दिल्ली में जारी हड़ताल का उल्लेख भी किया। जिस का आह्वान जस्टिस गौरंग कंठ के दिल्ली हाईकोर्ट से कोलकाता हाईकोर्ट में तबादले के विरोध में किया गया है। इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद करने का निर्णय लेते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि नियामक संस्था होने के नाते वकीलों की हड़ताल को अवैध और गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद से उसने हड़ताल का आह्वाहन करने और हड़ताल में शामिल होने वाले वकीलों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की है संबंध में एक हलफनामा अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें।
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