हाल ही में मुंबई हाई कोर्ट ने कहा है। कि व्हाट्सएप स्टेटस के माध्यम से दूसरों तक अपनी बात पहुंचाते समय ऐसा व्यवहार करना चाहिए। जिससे किसी की भावनाएं आहत ना हो। और पोस्ट की गई सामग्री ऐसी होनी चाहिए। जिससे किसी का अपमान ना होता हो। मुंबई हाई कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए की है। जिसमें व्हाट्सएप स्टेटस के माध्यम से जानबूझकर एक समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपमानित करने के लिए आरोपी के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। मामले के अनुसार किशोर लांडकर नामक व्यक्ति ने मार्च 2023 में अपना व्हाट्सएप स्टेटस अपलोड किया था। जिसमें उसने एक प्रश्न लिखा था।और उसके नीचे लिखा था। इस प्रश्न का उत्तर गूगल पर सर्च करने पर चौकानेवाले परिणाम प्राप्त होंगे। शिकायतकर्ता ने किशोर लांडकर कर द्वारा अपने व्हाट्सएप स्टेटस में लिखे पश्न को जब गूगल पर खोजा तो गूगल के सर्च इंजन ने उसे जो सामग्री दिखाई । वह शिकायतकर्ता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली और अपमानित करने वाली थी। जिसके बाद शिकायतकर्ता ने आपत्तिजनक व्हाट्सएप स्टेटस अपलोड करने वाले किशोर लांडकर के विरुद्ध आईपीसी की धाराओं, एस सी/एस टी अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत एफ आई आर दर्ज करा दी। आरोपी ने इसी एफआईआर को रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था। आरोपी का तर्क था। कि व्हाट्सएप स्टेटस के माध्यम से उसका इरादा जानबूझकर किसी समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने और उन्हें अपमानित करने का कतई नहीं था। उसने आगे कहा कि व्हाट्सएप स्टेटस केवल वह लोग ही देख सकते हैं जिन्होंने स्टेटस डालने वाले व्यक्ति का फोन नंबर अपने मोबाइल के व्हाट्सएप में सेव किया हो। इससे जाहिर होता है कि उसका इरादा समाज में नफरत फैलाना नहीं था। अभियोजन पक्ष ने आरोपी के तर्कों का विरोध करते हुए कहा कि व्हाट्सएप स्टेटस में व्यक्ति वही सामग्री अपलोड करता है। जैसा वह सोचता है और करना चाहता है। भले ही व्हाट्सएप स्टेटस 24 घंटे के बाद स्वचालित रूप से गायब हो जाता है। फिर भी व्यक्ति अपनी बात को उसके कांटेक्ट में रह रहे व्यक्तियों तक पहुंचा देता है। व्हाट्सएप स्टेटस अपने परिचितों के साथ संचार का एक माध्यम है। आरोपी ने इसके माध्यम से जो कृत्य किया है। वह शिकायतकर्ता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला और उसे अपमानित करने वाला है। आरोपी द्वारा अपलोड किए गए व्हाट्सएप स्टेटस ने लोगों को गूगल पर सर्च करने और उपलब्ध सामग्री को पढ़ने के लिए प्रेरित किया था। आरोपी के उकसावे में आकर ही शिकायतकर्ता ने गूगल पर सर्च किया था। जिससे आरोपी के इरादे का पता चलता है कि वह लोगों से क्या चाहता था। जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस बाल्मीकि एस ए मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि व्हाट्सएप पर सक्रिय लोग अपने परिचितों का व्हाट्सएप स्टेटस देखते हैं। ताकि वह अपने परिचितों द्वारा दिए जा रहे संदेशों से अवगत रह सकें। इसलिए किसी को भी अपने परिचितों को ऐसे संदेश नहीं देनी चाहिए। जिससे कि उनकी भावनाएं आहत हो या उनके लिए अपमानजनक हो। अदालत ने कहा है कि एफआईआर में लगाए गए आरोपों से प्रथम दृष्टया आरोपी के विरुद्ध एक समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अपमान करने के अपराध का गठन होता है। मामले की जांच अपने प्रारंभिक चरण में है। आरोपी यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। कि व्हाट्सएप स्टेटस सीमित प्रचलन में है। जिसको सिर्फ कुछ ही लोग देखते हैं। और वह 24 घंटे में गायब हो जाता है। अदालत ने आरोपी के विरुद्ध दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इंकार कर दिया।
ऐसा व्हाट्सएप स्टेटस ना लगाएं जिससे किसी की भावनाएं आहत होती हो। और उनका अपमान होता हो - मुंबई हाई कोर्ट
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