मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है। कि धार्मिक उत्सव शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बन गए हैं। इनके जरिए एक समूह दूसरे समूह को अपनी ताकत का एहसास करा रहा है। जिससे इन उत्सवों के माध्यम से लोगों के मन में ईश्वर के प्रति पैदा होने वाली भक्ति और धार्मिकता कहीं पीछे छूट गई है। जिस मकसद से धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है। वह मकसद ही पूरा नहीं हो रहा है। अदालत ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है । कि शक्ति प्रदर्शन के लिए आयोजित किए जाने वाले धार्मिक उत्सवों को बंद कर देना चाहिए। जिससे कि इन उत्सवों के नाम पर होने वाली हिंसा को रोका जा सके। जस्टिस आनंद वेंकटेश की पीठ ने मदिर और धार्मिक उत्सव आयोजित करने के उद्देश्य के संदर्भ में कहा है। कि इनका उद्देश्य भक्तों को शांति और खुशी प्रदान करने के लिए उन्हें भगवान से जोड़ना है। भगवान से जुड़कर ही भक्तों को सुख शांति का अनुभव होता है। लेकिन दुर्भाग्य से आज भक्त इन उत्सवों के माध्यम से भगवान से नहीं जुड़ पा रहे हैं। क्योंकि इन उत्सवों को शक्ति प्रदर्शन का जरिया बना लिया गया है। इन के माध्यम से एक समूह दूसरे समूह पर हावी होने का प्रयास करता है। जिससे समाज में हिंसा को बढ़ावा मिलता है। शक्ति प्रदर्शन इंसान के अहंकार का प्रतीक है।जो कि धार्मिक उत्सव आयोजित करने के उद्देश्य के एकदम विपरीत है। इससे धार्मिक उत्सव आयोजन का मूल उद्देश्य ही विफल हो गया है। ऐसी स्थिति में जबकि धार्मिक उत्सव आयोजन का मूल उद्देश्य ही विफल हो गया है। इस प्रकार के आयोजनों की आवश्यकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। ऐसे में इन उत्सवों के आयोजन को बंद कर देना ही बेहतर है। ताकि इन उत्सवों के नाम पर होने वाली हिंसा को रोका जा सके।
अदालत ने उपरोक्त टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की है। जिसमें एक मंदिर में धार्मिक उत्सव आयोजित करने के लिए पुलिस सुरक्षा देने की मांग की गई थी। थंगारासु उर्फ के थंगाराज नामक व्यक्ति ने स्वयं को अरुलमिधु श्री रुथरा महाकलियाम्मन अलयम का वंशानुगत ट्रस्टी बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था। कि मंदिर में हर साल आदि माह के दौरान धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। और इस वर्ष 23 जुलाई से 1 अगस्त तक इस धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाना है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि धार्मिक उत्सव आयोजन के दौरान कोई अप्रिय घटना घटित ना हो। याचिकाकर्ता ने पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी। याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने अदालत को अवगत कराया। कि धार्मिक उत्सव आयोजित करने को लेकर दो समूह के बीच विवाद की स्थिति है। विवाद की स्थिति को देखते हुए धार्मिक उत्सव के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए स्थानीय तहसीलदार द्वारा दोनों समूहों के बीच शांति समझौते का प्रयास किया गया था। और एक बैठक आयोजित की गई थी। लेकिन दोनों समूह के बीच समझौता नहीं हो सका और विवाद की स्थिति बनी हुई है। क्योंकि दो समूहों के मध्य धार्मिक उत्सव आयोजित करने को लेकर विवाद है। इसलिए धार्मिक उत्सव आयोजन की अनुमति देने से शांति भंग होने की आशंका है। जिससे कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होगी। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तहसीलदार ने धार्मिक उत्सव आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि प्रशासन और पुलिस के ऊपर अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारियां हैं। इन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा करना उनका प्राथमिक कर्तव्य है। लेकिन समूहों के बीच विवादों को सुलझाने उनका महत्वपूर्ण समय और ऊर्जा व्यय हो जाती है। जिससे प्रशासन और पुलिस को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। वह उन कार्यों को समय से पूरा नहीं कर पाते हैं। जिन्हें पूरा करना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। अदालत ने यह देखते हुए कि दोनों समूह धार्मिक उत्सव आयोजन के नाम पर अपनी अपनी शक्ति प्रदर्शित करना चाहते हैं। जो उनके अहंकार का प्रतीक है। इसका भगवान की भक्ति और धार्मिकता से कुछ भी लेना देना नहीं है। जब दोनों समूहों ने अहंकार के वशीभूत होकर अपनी अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है। तो उसके लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने दोनों समूहों से कहा है। कि वे अपने अहंकार को त्याग कर शांतिपूर्ण ढंग से धार्मिक उत्सव मना सकते हैं। और भगवान की भक्ति में लीन होकर सुख शांति का आनंद ले सकते हैं। इसकी उन्हें स्वतंत्रता है। इसके साथ ही अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया है। इलाके की शांति भंग के प्रयास और कानून व्यवस्था की समस्या होने पर पुलिस हस्तक्षेप कर आवश्यक कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
अदालत ने उपरोक्त टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की है। जिसमें एक मंदिर में धार्मिक उत्सव आयोजित करने के लिए पुलिस सुरक्षा देने की मांग की गई थी। थंगारासु उर्फ के थंगाराज नामक व्यक्ति ने स्वयं को अरुलमिधु श्री रुथरा महाकलियाम्मन अलयम का वंशानुगत ट्रस्टी बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था। कि मंदिर में हर साल आदि माह के दौरान धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। और इस वर्ष 23 जुलाई से 1 अगस्त तक इस धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाना है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि धार्मिक उत्सव आयोजन के दौरान कोई अप्रिय घटना घटित ना हो। याचिकाकर्ता ने पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी। याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने अदालत को अवगत कराया। कि धार्मिक उत्सव आयोजित करने को लेकर दो समूह के बीच विवाद की स्थिति है। विवाद की स्थिति को देखते हुए धार्मिक उत्सव के शांतिपूर्ण आयोजन के लिए स्थानीय तहसीलदार द्वारा दोनों समूहों के बीच शांति समझौते का प्रयास किया गया था। और एक बैठक आयोजित की गई थी। लेकिन दोनों समूह के बीच समझौता नहीं हो सका और विवाद की स्थिति बनी हुई है। क्योंकि दो समूहों के मध्य धार्मिक उत्सव आयोजित करने को लेकर विवाद है। इसलिए धार्मिक उत्सव आयोजन की अनुमति देने से शांति भंग होने की आशंका है। जिससे कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होगी। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए तहसीलदार ने धार्मिक उत्सव आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि प्रशासन और पुलिस के ऊपर अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारियां हैं। इन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को पूरा करना उनका प्राथमिक कर्तव्य है। लेकिन समूहों के बीच विवादों को सुलझाने उनका महत्वपूर्ण समय और ऊर्जा व्यय हो जाती है। जिससे प्रशासन और पुलिस को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। वह उन कार्यों को समय से पूरा नहीं कर पाते हैं। जिन्हें पूरा करना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। अदालत ने यह देखते हुए कि दोनों समूह धार्मिक उत्सव आयोजन के नाम पर अपनी अपनी शक्ति प्रदर्शित करना चाहते हैं। जो उनके अहंकार का प्रतीक है। इसका भगवान की भक्ति और धार्मिकता से कुछ भी लेना देना नहीं है। जब दोनों समूहों ने अहंकार के वशीभूत होकर अपनी अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है। तो उसके लिए पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने दोनों समूहों से कहा है। कि वे अपने अहंकार को त्याग कर शांतिपूर्ण ढंग से धार्मिक उत्सव मना सकते हैं। और भगवान की भक्ति में लीन होकर सुख शांति का आनंद ले सकते हैं। इसकी उन्हें स्वतंत्रता है। इसके साथ ही अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया है। इलाके की शांति भंग के प्रयास और कानून व्यवस्था की समस्या होने पर पुलिस हस्तक्षेप कर आवश्यक कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
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