सहमति से सेक्स की उम्र 18 वर्ष उन किशोर- किशोरियों के लिए अन्यायकारी है। जो इससे पूर्व अपनी इच्छा से सेक्स संबंध बनाना चाहते हैं - मुंबई हाई कोर्ट


 बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि सरकार को सहमति से सेक्स की उम्र कम करने पर विचार करना चाहिए। अदालत ने विश्व के कई देशों में सहमति से सेक्स की उम्र का उल्लेख करते हुए कहा है। संभवत भारत उनमें से एक है। जहां सहमति से सेक्स की उम्र सबसे अधिक है। अदालत ने कहा विश्व के अधिकांश देशों ने सहमति से सेक्स की उम्र 14 वर्ष से 16 वर्ष निर्धारित की है। हमारे देश के कानून निर्माता भी इससे भलीभांति अवगत हैं। जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, हंगरी आदि देशों में 14 साल की उम्र के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने को सक्षम माना जाता है। इंग्लैंड, वेल्स यहां तक कि भारत के पड़ोसी बांग्लादेश और श्रीलंका में भी सेक्स के लिए सहमति देने की उम्र 16 वर्ष है। जबकि जापान में सेक्स के लिए सहमति देने की उम्र 13 वर्ष ही है। भारत में भी यह उम्र सन 2012 तक 16 वर्ष की थी। जिसके बाद इसे बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। सहमति से सेक्स की उम्र बढ़ जाने से ऐसे किशोर किशोरियों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है जो अपनी मर्जी से यौन संबंध बनाते हैं। यदि लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम होती है तो उसके पुरुष पार्टनर को यौन अपराध का दोषी मानकर इसके विरुद्ध मुकदमा चलाया जाता है और उसे जेल में ठूंस दिया जाता है। अदालत ने कहा विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण से बने रोमांटिक रिश्तो के अपराधीकरण ने न्याय प्रणाली पर बोझ डाला है। जिससे न्यायपालिका के महत्वपूर्ण संसाधन और समय खर्च होता हैं। इसके साथ ही उन किशोर किशोरियों के साथ भी अन्याय होता है जो किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप अपनी यौन आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं।                  क्या मामला था-                                                       अदालत ने उपरोक्त        टिप्पणियां उस मामले में की हैं। जिसमें मुंबई के वडाला इलाके में स्थित एंटॉप हिल पुलिस स्टेशन में एक 25 वर्षीय युवक के विरुद्ध एक 17 वर्षीय युवती से बलात्कार के आरोप में पोक्सो अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी युवक को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। हालांकि मामले में ट्रायल के दौरान पीड़ित युवती ने कहा था कि उसने आरोपी से स्वेच्छा से शादी की थी। पीड़ित युवती का यह भी कहना था कि मुस्लिम समाज में 15 वर्षीय लड़की स्वेच्छा से शादी कर सकती है। यूवती का कहना था। आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न नहीं किया है। उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए गए थे। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने युवती के बयानों को महत्वहीन माना। क्योंकि पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम थी और तकनीकी रूप से वह नाबालिग थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए कहा था कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पीड़िता नाबालिग थी। कानून के अनुसार नाबालिग की सहमति का कोई महत्व नहीं है। पीड़िता ने भले ही सहमति दी थी। लेकिन नाबालिग होने के कारण उसकी सहमति भी असहमति के समान है।                                                             ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।                                                        हाई कोर्ट ने क्या कहा-                                                      जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि व्यक्ति की यौन स्वायत्तता में यौन गतिविधि के लिए निर्णय लेने की क्षमता और यौन आक्रमण से सुरक्षा दोनों शामिल हैं। इनकी रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। किशोर आयु वर्ग के व्यक्तियों को यौन गतिविधियों में  शामिल होने के निर्णय लेने के उनके अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता है। सहमति से शारीरिक संबंध सिर्फ शादी के दायरे के भीतर ही नहीं होते हैं। सहमति से सेक्स संबंध शादी के दायरे से बाहर भी हो सकते हैं। इसलिए समाज और न्यायपालिका दोनों को सहमति की उम्र और शादी की उम्र के बीच के अंतर को पहचानना चाहिए। वर्तमान में इस अंतर को पहचाने बिना ही ऐसा माना जाता है। कि नाबालिग के साथ हर यौन संबंध फिर चाहे उस संबंध में नाबालिग की समान भागीदारी ही क्यों ना हो बलात्कार माना जाता है।                        अदालत ने कहा आरोपियों को तब भी दंडित किया जाता है जब पीड़िता       स्वयं कहती है। कि यौन संबंध के लिए    उसकी सहमति थी। और उसने आरोपी से शादी की है। या करने वाली है। पोक्सो अधिनियम की चर्चा करते हुए अदालत ने कहा कि अधिनियम का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। उन किशोरों को दंडित करना नहीं है। जो आपसी सहमति से रिश्ते में उतरते हैं।                                               अदालत का निष्कर्ष--                                                            पीठ ने यह देखते हुए कि पीड़िता और आरोपी दोनों ने अपने बयानों में कहा है। कि वह दोनों सहमति से रिश्ते में थे। अदालत ने पीड़िता की उम्र, निर्णय लेने की उसकी क्षमता को महत्व देते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को दोषी ठहराए जाने के आदेश को रद्द कर दिया। और आरोपी को तत्काल कैद से मुक्त करने का आदेश पारित किया।    

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