दूसरी पत्नी को भी भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार - मद्रास हाई कोर्ट

 मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है। पहली पत्नी उपस्थिति के कारण दूसरा विवाह भले ही कानूनी रूप से अवैध है। फिर भी दूसरी पत्नी को भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है।                                                      मामले के अनुसार एक व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ तलाक का मुकदमा लंबित था। इसी बीच उसने एक अन्य महिला से विवाह कर लिया। इस विवाह संबंध से दोनों को एक बेटी भी है। दूसरी पत्नी से भी व्यक्ति के संबंध खराब हो गए। जिसके बाद दूसरी पत्नी ने फैमिली कोर्ट में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन देकर अपने तथा अपनी नाबालिग बेटी के लिए भरण-पोषण की मांग की। पत्नी के आवेदन के जवाब में पति ने अदालत में जवाबी हलफनामा दायर कर कहा कि वह पहले से शादीशुदा है। कथित पत्नी से उसका कोई विवाह नहीं हुआ था। इसलिए वह दूसरी पत्नी और उसकी नाबालिग बेटी के भरण-पोषण के लिए उत्तरदाई नहीं है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि नाबालिग बेटी का पिता प्रतिवादी ही है फैमिली कोर्ट ने महिला तथा उसकी नाबालिग बेटी को ₹10000 प्रतिमाह भरण पोषण देने का आदेश दिया। फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रतिवादी ने मद्रास हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।                                                         जस्टिस के मुरलीशंकर की पीठ ने पति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भले ही पहली शादी के अस्तित्व के कारण दूसरी शादी कानूनी रूप से मान्य नहीं है। फिर भी दूसरी शादी करने वाली पत्नी और उसकी नाबालिग बेटी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण की हकदार है। अदालत ने कहा इसमें कोई संदेह नहीं है। क्योंकि पहली शादी अभी भी कायम है। इसलिए दूसरी शादी करने के सबूत होने पर भी इसे वैध नहीं कहा जा सकता है।                   पीठ ने रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों का अवलोकन कर कहा कि पति की पहली पत्नी के खिलाफ तलाक की अर्जी को 31. 5.2015 को खारिज कर दिया गया था। पहली पत्नी के विरुद्ध तलाक की याचिका खारिज किए जाने वाले आदेश के विरुद्ध उसने अपील दायर की है। इस प्रकार पहली पत्नी से शादी अभी भी कायम है। क्योंकि पहली शादी अभी भी कायम है। इसलिए दूसरी पत्नी और और प्रतिवादी के बीच होने वाला विवाह साबित होने पर भी वैध नहीं कहा जा सकता है।                                                                     अदालत ने आगे कहा कि जब पति से बहस के दौरान कहा गया। कि क्या वह बेटी के पितृत्व को साबित करने के लिए डीएनए परीक्षण कराने को तैयार है। तो उसने परीक्षण कराने से इंकार कर दिया। पत्नी द्वारा पेश सबूतों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि पत्नी ने स्पष्ट रूप से साबित कर दिया है कि वह प्रतिवादी के साथ पत्नी के रूप में रह रही थी। जिससे पति पत्नी संबंधों के कारण उनकी एक बेटी पैदा हुई है।              पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने अपने फैसले में सही कहा है कि पति के जानबूझकर धोखाधड़ी करने के इरादे को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। वह भरण पोषण का मामला दायर होने से पूर्व अपनी पत्नी और बेटी को जानता था और उनके मध्य एक पत्नी और एक बेटी का रिश्ता था।                                                          पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के प्रयोजन के लिए कथित पत्नी को पत्नी और बच्चे को पति की बेटी माना जा सकता है। इसलिए फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष को गलत नहीं ठहराया जा सकता कि आवेदनकर्ता प्रतिवादी पति से अपने तथा अपनी नाबालिग बेटी के लिए गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।              भरण पोषण की रकम के संबंध में पीठ ने कहा कि वर्तमान आर्थिक परिदृश्य और दोनों पक्षों की स्थिति को ध्यान में रखकर भरण-पोषण की मासिक रकम का निर्धारण किया गया है। यह रकम अत्यधिक नहीं है।

INDIAN LAW EXPRESS

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