बलात्कार के आरोपों से बचने के लिए कई आरोपी बलात्कार पीड़िता से शादी करने का हथकंडा अपनाते हैं - दिल्ली हाईकोर्ट

 दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है। कि ऐसा प्रचलन देखने में आया है। जब बलात्कार के कारण पीड़िता गर्भवती हो जाती है। तो बलात्कार का आरोपी आपराधिक आरोपों से बचने के लिए नाबालिग से शादी कर लेता है। अगर मामले में एफ आई आर दर्ज हो जाती है। तो आरोपी जमानत पर जेल से छूटने अथवा जमानत पर जेल से बाहर है तो एफआईआर सहित मामले की कार्यवाहीयों को रद्द कराने के लिए पीड़िता से शादी करने का ढोंग करता है। शादी करने के आधार पर जब आरोपी के विरुद्ध लंबित मामला रद्द हो जाता है। तो उसके कुछ समय पश्चात आरोपी पीड़िता को छोड़ देता है। जिससे यह पता चलता है। कि बलात्कार पीड़िता से शादी करना। बलात्कार के आरोपों से वचने का आरोपियों का एक हथकंडा है।                                                                    दिल्ली हाईकोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणियां उस मामले की सुनवाई के दौरान की हैं। जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366ए, 376, 505 और यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम के तहत आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।                                                          मामले के अनुसार 17 साल की एक पीड़िता की जान पहचान 20 साल के आरोपी से उस दरमियान हो गई थी। जब वह ट्यूशन पढ़ने जाती थी। लड़की का आरोप है कि एक दिन आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ खिला दिया। उसके बाद आरोपी ने उसे एक गेस्ट हाउस में ले जाकर उसकी सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। आरोपी ने इस वारदात का एक वीडियो भी बना लिया था। और वीडियो को सोशल मीडिया में सार्वजनिक रूप से प्रसारित करने की धमकी देकर ब्लैकमेल करने लगा था। और इसी आधार पर उसने अनेक बार शारीरिक संबंध बनाए थे। जिससे पीड़िता गर्भवती हो गई थी। पीड़िता के गर्भवती हो जाने की जानकारी जब पीड़िता की मां को हुई ‌‌। तो पीड़िता की मां ने आरोपी से पूछताछ की और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी। जिससे बौखलाकर आरोपी ने पीड़िता और उसकी मां को धमकाते हुए कहा अगर ऐसा कुछ किया। तो अंजाम बहुत बुरा होग। पीड़िता के बयानों के अनुसार उसके बाद आरोपी ने पीड़िता से शादी के कागजातों पर जबरन हस्ताक्षर करा लिए और पीड़िता को साथ लेकर किराए के मकान में रहने लगा। समाज के डर से पीड़िता और उसके परिवार वाले चुप ही रहे और आरोपी के साथ पीड़िता की शादी करने में ही अपनी भलाई समझी।                                                          शादी के बाद भी आरोपी ने पीड़िता के साथ दुर्व्यवहार करना जारी रखा। जिसके बाद तंग आकर पीड़िता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और उसके बाद गर्भ को भी समाप्त कर दिया।                                         आरोपी ने इसी मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। आरोपी के वकील ने अदालत से कहा कि पीड़िता और आरोपी दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं। दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की थी। वकील ने दोनों के मुस्लिम होने का हवाला देते हुए कहा कि पीड़िता की उम्र 17 वर्ष है। क्योंकि मुस्लिम कानून के अनुसार लड़की की शादी की उम्र 15 वर्ष है। इसलिए दोनों का विवाह वैध है।                                                         मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से सरकारी वकील ने कहा कि पीड़िता ने अपने बयानों में कहा है।आरोपी ने उसको ब्लैकमेल कर जबरन शारीरिक संबंध बनाए थे। पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष बयानों में भी अपने इन आरोपों की पुष्टि की है।                                                                    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मुस्लिम कानून को एक ओर रखते हुए कहा कि यौन संबंध भले ही नाबालिग की सहमति से बनाया गया हो। हालांकि नाबालिग ने सहमति से इनकार किया है। फिर भी अगर यह मान भी लिया जाए कि यौन संबंधों के लिए नाबालिग की सहमति थी। तब भी सहमति के आधार पर एफआइआर को रद नहीं किया जा सकता क्योंकि यौन संबंधों के लिए नाबालिग की सहमति का कोई महत्व नहीं है।कानून की नजर में नाबालिग की सहमति भी असहमति के बराबर है।                                                                       अदालत ने कहा मामले के तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है। कि आरोपी ने किस प्रकार पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाए। वारदात का वीडियो बनाया। वीडियो को सार्वजनिक रूप से प्रसारित करने की धमकी देकर अनेक बार पीड़िता का यौन उत्पीड़न किया।                                                                              अदालत ने कहा वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है। आरोपी के विरुद्ध लगाए गए आरोप निराधार नहीं हैं। इसलिए इस स्तर पर एफआईआर को रद्द करने का आदेश देना अनुचित होगा। जिसके बाद अदालत ने एफआईआर को रद्द करने का आदेश देने से इनकार करते हुए आरोपी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।

INDIAN LAW EXPRESS

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