प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अपशब्दों का प्रयोग देशद्रोह नहीं है - कर्नाटक हाई कोर्ट

 हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है। कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के लिए अपशब्दों का प्रयोग करना अपमानजनक और गैर जिम्मेदाराना है। सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना की की जा सकती है। लेकिन इसके लिए संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग कर उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता है। लेकिन अदालत ने संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के लिए अपशब्दों के प्रयोग को देशद्रोह मानने से इनकार कर दिया।                                         मामले के अनुसार कर्नाटक के बीदर स्थित एक स्कूल में 21 जनवरी 2020 को स्कूल के छात्र- छात्राओं द्वारा सीएए और एनआरसी के विरोध में एक नाटक का मंचन किया गया था। नाटक मंचन के इस कार्यक्रम के दौरान ही कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी को अपशब्द कहे थे। आरोपियों में से एक ने इस कार्यक्रम का वीडियो रिकॉर्ड किया था। जिसे बाद में उसने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपलोड कर किया था। जिसके बाद भाजपा से संबंध रखने वाले नीलेश रक्षला की शिकायत पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और सी ए ए तथा एनआरसी कानूनों के बारे में नकारात्मक राय फैलाने के आरोप में स्कूल प्रबंधन से संबंधित व्यक्तियों के विरुद्ध बीदर के न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 504, 505(2),124ए,153ए और 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।                                    जस्टिस हेमंत चंदन गौदर की पीठ ने हाल ही में इस मामले की कार्यवाहियों को रद्द करने का आदेश दिया है। आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा है। कि एक नागरिक को सरकार और सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा लिए गए निर्णय की आलोचना करने का अधिकार है। जब तक कि वह कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ अथवा सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से लोगों को हिंसा के लिए उकसाया नहीं है।                                                                                 अदालत ने कहा है कि आईपीसी की धारा 124 ए के तहत अपराध का गठन तभी होता है। जब आरोपी लोगों का हिंसा का सहारा लेने के लिए उकसाता है। और कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति लोगों के मन में असंतोष पैदा करने का प्रयास करता है। घृणा और द्वेष पैदा करने का प्रयास करता है। जब आरोपी का इरादा अपने क्रियाकलापों,भाषणों और अभिव्यक्तियों के माध्यम से देश की सार्वजनिक और कानून व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने का होता है।                                               अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में सीएए और एनआरसी कानूनों के विरोध में नाटक मंचन द्वारा छात्रों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। जिससे सामाजिक या कानून व्यवस्था को कोई खतरा हो सकता था। लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का कोई मामला नहीं है। क्योंकि नाटक का मंचन स्कूल के अंदर किया गया था। और इसके बारे में बड़ी संख्या में लोगों को जानकारी नहीं थी। जिससे कुछेक लोग ही इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। सीएए और एनआरसी के विरोध में नाटक मंचन की जानकारी तभी सार्वजनिक हुई जब इसका वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया था।                   अदालत ने कहा मामले के तथ्यों को देखते हुए ऐसा नहीं कहा जा सकता है। कि आरोपियों ने लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा करने के लिए उकसाने या अव्यवस्था फैलाने के उद्देश्य से सीएए और एनआरसी कानूनों के विरोध में नाटक का मंचन किया था।                           अदालत ने कहा क्योंकि आरोपियों का इरादा लोगों को सरकार के विरुद्ध हिंसा करने के लिए उकसाने या या सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने का नहीं था। इसलिए इस मामले में आईपीसी की धारा 124 ए और 505 (2) आकर्षित नहीं होती हैं।                                             अदालत ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 153 ए के तहत अपराध गठन के लिए धर्म संप्रदाय,जन्मस्थान,जाति,निवास, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का इरादा होना चाहिए। इस मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने माना। कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है। जिससे यह अनुमान लगाया जा सके। कि आरोपियों ने किसी अन्य समूह के प्रति दुश्मनी या नफरत को बढ़ावा दिया था।                                                       अदालत ने आरोपी स्कूल प्रबंधकों को चेतावनी देते हुए कहा है कि उनका काम स्कूल के बच्चे बच्चियों को सरकार की नीतियों की आलोचना करना सिखाना नहीं है। उनका काम बच्चों को शिक्षित कर सभ्य नागरिक बनाना है। उनके लिए ज्ञान के द्वार खोलना है। लिहाजा उन्हें इस प्रकार के आयोजनों से दूर रहना चाहिए। क्योंकि इससे बच्चों का भविष्य उज्जवल होने वाला नहीं है।

INDIAN LAW EXPRESS


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