सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक न्यायिक अधिकारी की उस याचिका को खारिज कर दिया है। जिसमें उसने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप की मांग की थी। जिसमें उसे एक अजनबी से विदेश यात्रा के दौरान होटल खर्च के रूप में ऐहसान स्वीकारने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। मामले के अनुसार 2003 बैच के न्यायिक अधिकारी नवीन अरोड़ा दिल्ली की द्वारका कोर्ट में न्यायाधीश के पद पर तैनात थे। वर्ष 2016 में उन्होंने अपने परिवार के साथ विदेश यात्रा की थी। विदेश यात्रा से लौटने के बाद खर्चों से संबंधित दस्तावेज उन्होंने विभाग को सौंपे थे। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में विसंगतियां पाए जाने के बाद उनके खिलाफ जांच शुरू की गई थी। जांच में पाया गया कि विदेश में उनके होटल का खर्च एक अजनबी व्यक्ति द्वारा वहन किया गया था। जिसके पश्चात उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अपनी बर्खास्तगी के आदेश को न्यायाधीश ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। उनका कहना था कि विदेश में उनके होटल का खर्च उनके भाई के दोस्त द्वारा वहन किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश यात्रा पर जाने से पहले उन्होंने भाई के दोस्त को होटल बुकिंग का पैसा देने का प्रयास किया था। लेकिन उस समय उसने पैसा लेने से मना करते हुए कहा कि विदेश यात्रा से वापस लौट आओ। विदेश यात्रा से वापसी के बाद वह पैसा ले लेगा। उन्होंने कहा था उस व्यक्ति का पैसा अभी भी बकाया है। और उसका पैसा उसे देना है। उन्होंने कहा कि इस जानकारी को उन्होंने छुपाया नहीं था। कि विदेश में उनके होटल का खर्च उनके भाई के दोस्त द्वारा वहन किया गया था। हाईकोर्ट ने न्यायाधीश की याचिका को खारिज करते हुए कहा था। कि न्यायिक अधिकारी का पद एक प्रतिष्ठित पद है। और जिम्मेदारियों से जुड़ा हुआ है। एक न्यायिक अधिकारी से अपेक्षा की जाती है। कि वह विवेकपूर्ण निर्णय लेगा। और चीजों को गंभीरतापूर्वक समझेगा। कोई भी ऐसा कार्य नहीं करेगा जिससे कि पद की गरिमा को ठेस पहुंचती हो। क्योंकि एक न्यायिक अधिकारी एक न्यायाधीश होता है। जो हमेशा न्याय करने के लिए प्रतिबद्ध होता है। हाई कोर्ट ने कहा था। कि मामले के तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है। कि न्यायाधीश की विदेश यात्रा के होटल का खर्च एक अजनबी द्वारा वहन किया गया था। न्यायाधीश का यह कृत्य अशोभनीय है। तथा पद की गरिमा के प्रतिकूल है। जिससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा धूमिल होती है। इसलिए ऐसे कृत्यों को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बर्खास्त न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी। जस्टिस हरिकेश रॉय और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है।
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