सार्वजनिक सभा/ मीटिंग में भाषण देने वाले भाषणकर्ता के भड़काऊ और आपत्तिजनक भाषणों के लिए सभा के आयोजकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है - दिल्ली हाईकोर्ट

INDIAN LAW EXPRESS

 दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है। कि किसी सार्वजनिक सभा / मीटिंग का आयोजन करने वाले आयोजनकर्ता को सभा में भाषण देने वाले भाषणकर्ता कर्ता के नफरती और भड़काऊ बयानों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि भाषण देने वाले के भाषणों पर आयोजकों का कोई नियंत्रण नहीं होता है।                                                                          मामले के अनुसार बर्ष 2019 में पुरानी दिल्ली के लाल कुआं इलाके में एक हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की वारदात को अंजाम दिया गया था। जिसके बाद हिंदू समाज आक्रोशित हो गया था। मंदिर में तोड़फोड़ की वारदात के बाद विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर में एक सभा का आयोजन किया था। सभा में काशी से आए एक हिंदू सन्यासी ने कथित तौर पर नफरती और भड़काऊ भाषण दिए थे। जिसके बाद इलाके में हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के बीच सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। इस घटना को आधार बनाकर एक सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने दिल्ली पुलिस से एफ आई आर दर्ज करने का अनुरोध किया था। पुलिस को दिए शिकायती पत्र में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था। कि नफरती और भड़काऊ बयानबाजी के लिए सभा के आयोजक आलोक कुमार उत्तरदायी हैं। जिसके कारण इलाके में सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ था। गौरतलब है। कि आलोक कुमार को विश्व हिंदू परिषद के एक नेता के रूप में पहचाना जाता है। दिल्ली पुलिस ने सभा के आयोजक और विश्व हिंदू परिषद नेता आलोक कुमार के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज नहीं की तो शिकायतकर्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में आवेदन देकर दिल्ली पुलिस को एफ आई आर दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया। शिकायतकर्ता के अनुरोध पर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने दिल्ली पुलिस को एफ आई आर दर्ज करने और मामले की निष्पक्ष जांच करने का आदेश दिया था। जिसके बाद सभा के आयोजक आलोक कुमार ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी की है।                                          दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की एकल न्यायाधीश वाली पीठ ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के एफ आई आर दर्ज करने के आदेश को रद्द करते हुए कहा है। कि आपराधिक कानून के सिद्धांत के अनुसार व्यक्तियों को केवल अपने कार्यों के लिए उत्तरदाई ठहराया जा सकता है। एक व्यक्ति के कार्यों के लिए दूसरे व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक कि किसी कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान ना हो।                      अदालत ने कहा है। कि किसी भाषणकर्ता के बयानों के लिए आयोजकों को जिम्मेदार मानने से आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांत का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा। जो कहता है। कि एक व्यक्ति को सिर्फ अपने कार्यों के लिए उत्तरदाई ठहराया जा सकता है। इसी के साथ अदालत ने कहा है। कि यदि सभा के आयोजकों को किसी भाषणकर्ता के भाषणों के लिए उत्तरदाई ठहराया जाने लगेगा। तो सार्वजनिक सभा का आयोजन करने वाले आयोजकों पर पर अनुचित भार पड़ेगा। जो उनके साथ अन्याय होगा।                                           अदालत ने अपने निर्णय में सार्वजनिक सभा में आयोजकों की भूमिका और जवाबदेही को सभा में भाग लेने वाले व्यक्तियों के आचरण से अलग करने की वकालत की है। और इसके महत्व को समझाते हुए कहा है। कि टेलीविजन पर किसी मुद्दे की बहस के दौरान, बहस में भाग लेने वाले व्यक्तियों के आचरण के लिए टीवी चैनल के एंकर को उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता है। उसी प्रकार किसी भाषणकर्ता के भाषणों के लिए सभा के आयोजकों को भी उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता है।                                                                       अदालत ने नफरती और भड़काऊ भाषणों की चर्चा करते हुए कहा है कि इस प्रकार की बयानबाजी से समाज में विभाजन बढ़ता है। सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है जिससे विघटनकारी शक्तियों को बल मिलता है। और नफरत का माहौल पैदा होता है। इस प्रकार के संवेदनशील मामलों से सावधानी पूर्वक निपटने की आवश्यकता होती है।                                                                  अदालत ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर गौर करते हुए कहा है कि सभा में दिया गया कथित नफरती और भड़काऊ भाषण कानूनी प्रावधानों के तहत भाषणकर्ता के विरुद्ध अपराध का गठन करने में सक्षम हो सकता है। लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है। कि आलोक कुमार ने कोई गैरकानूनी कृत्य किया है।और हिंसा भड़काने के इरादे से सभा का आयोजन किया था।                                                                   अदालत ने यह भी नोट किया है। कि जिस समय कथित नफरती और भड़काऊ भाषण दिया गया था। उस समय आलोक कुमार के सभा स्थल पर उपस्थित होने के कोई प्रमाण नहीं है।

Post a Comment

Previous Post Next Post