केरल हाई कोर्ट ने एक महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा को यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले को रद्द करते हुए कहा है कि नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं। नग्नता को अनिवार्य रूप से अश्लील या अनैतिक के रूप में वर्गीकृत करना गलत है। मामले के अनुसार रेहाना फातिमा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो प्रसारित किया था। जिसमें वह अर्धनग्न मुद्रा में दिखाई दे रही थी। उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा नग्न था। वीडियो में उसके नाबालिग बच्चे उसके नग्न शरीर पर पेंटिंग करते दिखाई दे रहे थे। महिला ने वीडियो को बॉडी और राजनीति नाम से पोस्ट किया था। महिला द्वारा वीडियो पोस्ट किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी नेता ए वी अरुण प्रकाश ने महिला की विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी। भाजपा नेता द्वारा यह शिकायत पठानमथिटा जिले के एक पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई थी। इस मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य के बाल संरक्षण आयोग ने पठानमथिटा जिले के पुलिस प्रमुख को पोक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया था। । इसी मामले में बॉडी और राजनीति नामक शीर्षक से सोशल मीडिया पर वीडियो प्रसारित करने पर केरल पुलिस की साइबर सेल ने कोच्चि शहर पुलिस स्टेशन में महिला के विरुद्ध यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। तत्पश्चात महिला को गिरफ्तार कर लिया गया था। मामले में महिला को सुप्रीम कोर्ट तक से जमानत नहीं मिल पाई थी। मामला कोच्चि की एक अदालत मेंविचाराधीन था। महिला ने अपने को निर्दोष बताते हुए अदालत से प्रार्थना की। कि वह मामले को रद्द करने का आदेश दें। निचली अदालत ने महिला के आवेदन पर मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। और महिला के आवेदन को रद्द कर दिया। निचली अदालत द्वारा महिला के आवेदन को रद्द कर दिए जाने पर महिला ने केरल हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा एक महिला को अपने शरीर के बारे में स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है। यह अधिकार उसके समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में है। जो संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार द्वारा संरक्षित है। अदालत ने आगे कहा कि महिला ने अपने शरीर को कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी थी। ताकि उसके बच्चे उसके शरीर के नग्न भाग पर पेंटिंग कर सकें। इससे यह अनुमान लगाना गलत है कि महिला ने यौन संतुष्टि के लिए बच्चों का उपयोग वास्तविक अथवा नकली यौन कार्यों के लिए किया था। ्मा्म्ले्मा्म्ल्मा््मा्म्ले्मा्म्ल्म्मा्म्ले्मा्म्ल्मा््मा्म्ले्मा्म्ल मामले की सुनवाई के दौरान महिला ने अदालत को बताया कि उसने वीडियो समाज के गलत दृष्टिकोण को उजागर करने के लिए बनाया था। समाज में आम धारणा है कि महिलाओं के शरीर का ऊपरी भाग किसी भी रूप में यौन संतुष्टि यौन क्रियाओं से जुड़ा हुआ है। इसलिए महिलाओं को अपने संपूर्ण शरीर को ढक कर रखना चाहिए। जबकि पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं है। पुरुष अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढके बिना कहीं भी आ जा सकते हैं। कोई उन पर उंगली नहीं उठाता है। जस्टिस कौसर एडपपागथ की पीठ ने महिला के तर्कों से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि महिला ने वीडियो एक सामाजिक संदेश देने के इरादे से प्रसारित किया था। जिससे यह निष्कर्ष निकलना कि बच्चों को पोर्नोग्राफी के लिए इस्तेमाल किया गया था। गलत होगा। अदालत ने वीडियो देखने के बाद कहा कि वीडियो में कामुकता का कोई संकेत नहीं है। महिला के अपने ही बच्चों द्वारा उसके नग्न शरीर के ऊपरी हिस्से पर पेंटिंग करने को यौन क्रिया से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। अभियोजन पक्ष के इस तर्क को कि महिला ने वीडियो में अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को नग्न रूप में दिखाया था। इसलिए यह अश्लील और अनैतिक है तथा लोगों की भावनाओं को भड़काने वाला है। अदालत ने यह कहकर खारिज कर दिया कि पुरुषों के ऊपरी शरीर के नग्न प्रदर्शन को कभी भी अश्लील अनैतिक और भावनाएं भड़काने वाला नहीं माना जाता है। तो महिला के ऊपरी हिस्से के नग्न प्रदर्शन को अश्लील और अनैतिक कैसे और क्योंकर माना जा सकता है। लिंग के आधार पर भेदभाव स्वीकार नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि सामाजिक नैतिकता और अपराधिकता दोनों अलग-अलग हैं। जिसे सामाजिक दृष्टि से गलत माना जाता है जरूरी नहीं है वह कानूनी दृष्टि से भी गलत है। ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन्हें करना समाज गलत मानता है लेकिन कानून उनकी इजाजत देता है। कानून लोगों को शराब पीने की इजाजत देता है लेकिन शराब पीना सामाजिक दृष्टि से गलत माना जाता है। अदालत ने कहा किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने की अनुमति तभी दी जा सकती है जब वह देश के किसी कानून का उल्लंघन करता हो। सामाजिक नैतिकता और लोगों की भावनाएं भड़काने का आधार किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने का कारण नहीं हो सकता है। हाई कोर्ट ने कहा निचली अदालत अपील करता द्वारा वीडियो में दिए गए संदेश के अभिप्राय को समझने में नाकाम रही है। महिला ने वीयो के माध्यम से स्त्री पुरुष समानता का संदेश दिया था। ऐसी स्थिति में अदालती कार्रवाई को जारी रखा जाता है तो इसका विपरीत प्रभाव महिला और उसके बच्चों पर पड़ेगा। अदालती कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना अनुचित होगा। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए कार्यवाहियों को रद्द करने का आदेश पारित कि अपील करता के विरुद्ध कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है।
सामाजिक संदेश प्रसारित करने के इरादे से महिला द्वारा अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को नग्न रूप में प्रदर्शित करना अश्लील और अनैतिक नहीं है -- केरल हाई कोर्ट
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