गुजरात हाई कोर्ट ने हाल ही में बलात्कार पीड़ित के पिता की ओर से दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि पीड़िता और उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण को कोई गंभीर बीमारी पाई जाती है तो ही गर्भपात कराने की अनुमति दी जाएगी। अगर पीड़िता और उसके गर्भ में पल रहा बच्चा दोनों स्वस्थ होंगे तो यह अदालत गर्भपात की अनुमति नहीं दे पाएगी। मामले के अनुसार दुष्कर्म पीड़िता की उम्र 16 वर्ष 11 माह है। उसके गर्भ में सात माह का बच्चा है। दुष्कर्म पीड़िता के पिता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गर्भपात करने की अनुमति मांगी थी। क्योंकि पीड़िता की गर्भावस्था उस समय सीमा को पार कर गई है जिस समय सीमा के अंदर गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना भी कराया जा सकता था। अदालत की अनुमति के बिना गर्भपात कराए जाने की समय सीमा 24 सप्ताह है। 24 सप्ताह की गर्भावस्था के बाद अदालत की अनुमति के बिना गर्भपात करना/ कराना कानूनन अपराध है। वर्तमान मामले में लड़की की गर्भावस्था 28 सप्ताह की है। और 16 अगस्त को प्रसव होने की संभावना है। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी अधिनियम,2021 बलात्कार पीड़ितों के लिए 24 सप्ताह तक के गर्भपात की अनुमति देता है। 24 सप्ताह से अधिक के भ्रूण की समाप्ति की अनुमति तभी देता है जब भ्रूण में गंभीर असामान्यता हो। पीड़िता के जीवन को खतरा हो। हालांकि इसके बावजूद भी अदालत अपनी असाधारण शक्तियों का उपयोग कर 24 सप्ताह से अधिक के भ्रूण को समाप्त करने की अनुमति उपयुक्त मामलों में दे सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने पीड़िता की उम्र और प्रसव के संभावित समय का हवाला देते हुए जल्द सुनवाई की मांग की। तो अदालत ने कहा कि कुछ समय पूर्व तक लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाया करती थी। और 17 साल की उम्र तक वह बच्चे की मां भी बन जाती थीं। इसके लिए अदालत ने हिंदू आचार संहिता मनुस्मृति का भी उल्लेख किया। जस्टिस समीर जे दवे की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील और सरकारी वकील दोनों को सुनने के बाद राजकोट स्थित सिविल अस्पताल के अधीक्षक को निर्देश दिया है कि वह पीड़िता और उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण की चिकित्सकीय जांच के लिए डॉक्टरों का एक पैनल गठित करें। पीड़िता की सही उम्र का पता लगाने के लिए ओसिफिकेशन टेस्ट करने तथा मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए मनोचिकित्सक की सेवाएं लेने का भी निर्देश दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को कहा है कि डॉक्टर के पैनल की रिपोर्ट आने के बाद ही वह मामले पर आगे विचार करेगी। इसके साथ ही अदालत ने स्पष्ट कर दिया है। अगर चिकित्साकीय पैनल की राय गर्भपात के पक्ष में होगी। तो अदालत गर्भपात करने की अनुमति देगी। पीड़िता और उसके गर्भ में पलने वाला भ्रूण स्वस्थ और सामान्य पाया जाता है तो अदालत गर्भपात करने की अनुमति नहीं देगी।
बलात्कार पीड़ित और उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण को कोई गंभीर बीमारी पाई जाती है तो ही गर्भपात की अनुमति दी जाएगी -- गुजरात हाई कोर्ट
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